नया सवेरा लेखनी प्रतियोगिता -28-Oct-2022
*नया सवेरा*
सबके शौक पूरे करने वाला और विलासिता से पूर्ण जीवन देने वाला नगर था - लक्ष्मी नगर। नगर में हर तरफ खुशहाली थी। ऐसा लगता था जैसे किसी के जीवन में कभी शाम ही नहीं होती। हर तरफ बहुमंजिली इमारतें शहर भर में भरी पड़ी थी।
लेकिन शहर का एक ऐसा भी कोना था जहाँ सुख सुविधा तो दूर, गंदी झोपड़पट्टी में जीवन गुजारने को वहाँ के लोग मजबूर थे। ये वही लोग थे जो परछाई की तरह रहकर सारे शहर की सेवा करते थे। सारी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में, बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें बनाने में, कल-कारखानों को चलाने में ये लोग जी जान से लगे थे। लक्ष्मी नगर के सभी वासियों को इन्होंने ऐसो आराम की जिंदगी जीने के लिए हर प्रकार से मेहनत की थी और कर भी रहे थे। लेकिन जैसा कि कहावत है ना - दीया तले अंधेरा। ठीक उसी प्रकार लक्ष्मी नगर के ऊँची-ऊँची बिल्डिंगों की परछाई इस झोपड़पट्टी पर आकर पड़ गई थी। यहाँ के लोगों के जीवन में हमेशा शाम ही होती थी। सुबह तो बस उन्हें अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए जगाती थी, ना कि जीवन को खुशनुमा बनाने के लिए।
इसी झोपड़पट्टी में एक लड़का रहता था - साकेत। महज बारह वर्ष की उम्र में उसने अपनी बस्ती में उजाला करने की एक कोशिश की थी। वह जानता था कि उसकी मेहनत एक न एक दिन जरूर रंग लाएगी और उसकी झोपड़पट्टी में भी नया सवेरा होगा। सब की तरह उसके पिता भी एक मजदूर थे और एक ठेकेदार के यहाँ काम करते थे। जो भी कमाते, उसमें से कुछ पैसे साकेत को पढ़ाने के लिए अवश्य बचाते। वह सोचते थे कि उसे पढ़ा-लिखा देंगे तो वह अच्छा जीवन जिएगा। उसके जीवन में नया सवेरा आ जाएगा। लेकिन साकेत तो उनसे भी दो कदम आगे था। वह चाहता था कि केवल वह ही नहीं, बस्ती के उसके सारे दोस्त भी पढ़े लिखे और खुशहाल जीवन जीयें। उन सभी के जीवन में भी नया सवेरा आये। परंतु शहर में काफी दूर जाकर स्कूल में पढ़कर फिर बस्ती में आना सभी के लिए संभव नहीं था। इसके लिए उसने एक पहल की। वह जो भी विद्यालय में सीखता, आकर अपने बस्ती के बच्चों को भी सिखाता। शुरुआत तो हो चुकी थी लेकिन सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाना बिना पाठ्य सामग्री के संभव नहीं हो पा रहा था। इसके अलावा बस्ती के लोगों का नजरिया भी काफी पिछड़ा हुआ था। बस्ती के लोग साकेत की खिल्ली उड़ाते और हमेशा कोई ना कोई मीन मेख निकालते रहते। वे अपने बच्चों को भी अपने जैसा बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि उनके बच्चे भी जल्द ही कमाने लग जाए ताकि दो पैसे और आने लगे।
सभी बच्चे आकर अपनी-अपनी परेशानियाँ बताने लगे तो साकेत भी पशोपेश में पड़ गया। काफी सोच विचार करने के बाद उसने सारे बच्चों के साथ एक टोली बनाई और एक शिक्षा प्रचार अभियान की शुरुआत की। सबके घरों में बारी-बारी जाकर सभी बच्चों के माता-पिता से मिलने-जुलने लगा और उन्हें पढ़ाई के फायदे बताने लगा। उसने समझाया कि अगर आपके उसूलों पर आपके बच्चे चलते रहे तो उनके बच्चे भी एक दिन मजदूर ही बनेंगे। वे दूसरों के घरों में उजाला तो करेंगे लेकिन खुद के घरों में एक दीये के लिए तरसते रहेंगे।
धीरे-धीरे उसे अपने काम में सफलता मिलने लगी। कुछ लोग उसकी मदद के लिए आगे आए। लेकिन सब ने कहा कि बस्ती में भी अपना एक स्कूल होता तो ज्यादा बेहतर होता। साकेत के मन में यह बात घर कर गई। उसने प्रण किया कि वह बस्ती में स्कूल खुलवा कर रहेगा।
अगली सुबह बस्ती के सारे बच्चे हाथों में तख्तियाँ लेकर लक्ष्मी नगर के कलेक्टर ऑफिस के सामने खड़े थे। उनका नेतृत्व साकेत कर रहा था। जैसे ही कलेक्टर साहब की गाड़ी ऑफिस में पहुँची, सभी बच्चे 'शिक्षा दो' के नारे के साथ उनके पीछे-पीछे भागे। कलेक्टर साहब काफी उदार प्रवृत्ति के थे। वह गाड़ी से उतरकर वहीं बच्चों से मिले। साकेत ने बताया - हम सभी में पढ़ने की ललक है। हम सब भी पढ़-लिख कर अपने जीवन में नया सवेरा लाना चाहते हैं। लेकिन हमारी बस्ती में एक स्कूल की कमी है। संसाधनों की भी कमी है। अगर आप स्कूल खुलवा दें तो आपकी बड़ी मेहरबानी होगी। कलेक्टर साहब को जानकर हैरानी हुई कि अभी तक उस बस्ती में स्कूल नहीं है। वे साकेत की बातों से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने तुरंत शिक्षा विभाग को स्कूल खुलवाने के निर्देश दिए।
साकेत के अथक प्रयास के पश्चात बस्ती में आज स्कूल खुल रहा था। बस्ती के सभी लोग साकेत की तारीफ करते नहीं थक रहे थे। उद्घाटन के लिए कलेक्टर साहब खुद आने वाले थे। जैसे ही कलेक्टर साहब पहुँचे, सभी बच्चे दौड़ कर उनके पास गए और उनका हाथ पकड़कर मंच तक ले आए। कलेक्टर साहब ने कहा - साकेत ने एक सपना देखा था। वह सपना जो इस बस्ती में एक नया सवेरा लेकर आता। मुझे बेहद खुशी है कि वह सपना आज पूरा हो रहा है। नया सवेरा हो चुका है। आप सभी जागिए और अपने बच्चों को स्कूल तक ले कर आइए। यह स्कूल एक दिन आपके बच्चों को मोती में बदल देगा। हीरा बना देगा। यह सब केवल साकेत के दृढ़ निश्चय का कमाल है। आज मैं इस स्कूल का उसे रोल मॉडल बनाता हूँ। उन्होंने मंच पर साकेत को आमंत्रित किया। साकेत ने कहा - मैंने तो केवल प्रयास किया है, लेकिन यह तभी सफल होगा जब आप सभी इस पर अमल करें। अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा पढ़ाएँ।
अब बारी थी स्कूल के उद्घाटन की। बच्चों के साथ कलेक्टर साहब फीता काटने के लिए पहुँचे। कलेक्टर साहब ने कहा - इसका उद्घाटन करने का असली हकदार साकेत है। उन्होंने कैंची साकेत की तरफ बढ़ा दी और उसके कंधे पर हाथ थपथपाया। साकेत फूला ना समाया। उसने फीता काटा और स्कूल के सामने से पर्दा हटाया। तालियों की गड़गड़ाहट से पूरी बस्ती गूंज उठी। स्कूल का नाम बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था - " *नया सवेरा* "।
- आशीष कुमार
मोहनिया, कैमूर, बिहार
Palak chopra
03-Nov-2022 03:35 PM
Shandar 🌸
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Ashish Kumar
03-Nov-2022 06:19 PM
जी बहुत-बहुत धन्यवाद
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Khan
01-Nov-2022 12:34 PM
Bahut khoob 😊🌸
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Ashish Kumar
01-Nov-2022 11:00 PM
जी बहुत-बहुत धन्यवाद
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shweta soni
01-Nov-2022 10:12 AM
Very nice 👍
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Ashish Kumar
01-Nov-2022 11:00 PM
थैंक यू सो मच
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